मोटापे की तरह दुबलापन भी एक समस्या है । हालाँकि दुबलेपन की समस्या उतनी बड़ी नहीं है जितनी कि मोटापे की । मोटे लोगों की तुलना में दुबले लोग प्रायः कम ही बीमार पड़ते हैं और उनके ज़्यादा दिनों तक जिन्दा रहने की भी संभावना रहती है ।
दुबलापन भगाने और सौन्दर्य बचाने के 21 घरेलु उपाय
मोटापे की तरह दुबलापन भी एक समस्या है । हालाँकि दुबलेपन की समस्या उतनी बड़ी नहीं है जितनी कि मोटापे की । मोटे लोगों की तुलना में दुबले लोग प्रायः कम ही बीमार पड़ते हैं और उनके ज़्यादा दिनों तक जिन्दा रहने की भी संभावना रहती है ।
फिर भी , अगर देहहड्डियों का कंकाल सा नज़र आए तो समझिए कि कुछ मांसलता लाने की ज़रूरत है । ठीक अनुपात में मांसल शरीर स्वास्थ्य व सौन्दर्य की दृष्टि से उचित है । आहार - विहार में उचित सुधार करके देह का दुबलापन दूर किया जा सकता है ।
कुछ लोग वंशगत प्रभाव से दुबले - पतले होते हैं । उनके शरीर की आंतरिक संरचना कुछ ऐसी होती है कि वे कितना भी पौष्टिक खाए - पिएं पर शरीर में चर्बी इकट्ठा ही नहीं हो पाती और चाहकर भी वे मांसल नहीं दिखते । ऐसे लोगों का दुबलापन दूर होना थोड़ा मुश्किल तो है पर असंभव नहीं है ।
दुबलापन दूर करने का कार्यक्रम बनाने से पहले यह देख लेना चाहिए कि कहीं किसी रोग की वजह से तो ऐसा नहीं है । यदि कोई रोग हो तो पहले उसे ठीक करने का उपाय करें । ज़्यादा संभव है कि आरोग्य होते ही दुबलापन भी खुद - ब - खुद दूर हो जाएगा ।
यदि बीमारी ठीक होने के बाद भी दुबलापन बना रहे तो इस अध्याय में दिए उपायों को आजमाकर लाभ उठाएं ।
बिना किसी ख़ास बीमारी के होते हुए भी दुबलापन है तो इसके पीछे - कम भोजन करना या भूखे रहना , पौष्टिकता रहित भोजन करना , देर जागना , कम विश्राम करना या क्षमता से ज्यादा श्रम करना , ज़्यादा उपवास करना , तनाव - चिंता - शोक में जीवन बिताना , पाचनशक्ति कमजोर होना आदि कारण हो सकते हैं । इसका अर्थ यह है कि यदि उक्त कारण ज़िम्मेदार हों तो दुबलापन दूर करने की कोशिश करने के साथ - साथ इन गड़बड़ियों को भी दूर करना चाहिए और ईष्या , द्वेष , चिंता , शोक , क्रोध से मुक्त होकर प्रसन्नचित्त , उमंग भरा जीवन बिताते हुए निम्न उपाय करने चाहिए
1) दुबलापन दूर करने की पहली शर्त यह है कि आप अपनी पाचनशक्ति मजबूत करें ताकि खाया - पिया शरीर में अच्छी तरहजच हो और खुलकर भूख लगे । इसके लिए हफ्ते भर विधिपूर्वक उपवास कर सकते हैं ।
2) तरीका यह है कि जब उपवास करना हो तो एक दिन पहले मूंग की खिचड़ी आदि हल्का भोजन लें । रात में दूध या पानी के साथ 2 चम्मच ईसबगोल , एरण्ड तेल अथवा त्रिफला सेवन करके उदर की सफाई करें ।
3) दूसरे दिन रोटी बंद कर दें और मौसमी फलों व बली हरी साग - सब्ज़ियों पर निर्वाह करें ।
4) तीसरे दिन 2-3 घण्टे के अंतराल पर थोड़ा - थोड़ा करके सिर्फ फलों का रस पिएं ।
5) चौथे दिन सिर्फ पानी पीकर रहें । साथ में नींबू और शहद ले सकते हैं ।
6) पाँचवें दिन पुनः फलों का रस लें ।
7) छठे दिन फल व उबली साग - सब्जी पर रहें । सातवें दिन एक - दो चपाती से शुरू करके धीरे - धीरे खुराक बढ़ाएं ।
8) इस उपवास काल में दो - तीन दिन एनिमा द्वारा पेट की सफाई कर लें तो बेहतर परिणाम मिलेगा।
9) उपवास करने के बाद प्रायः भूख खूब लगने लगती है और खुराक बढ़ जाती है । इस तरहसे बढ़ी हुई खुराक दुबलापन दूर करने में अत्यन्त सहायक है ।
10) दुबले लोग सबेरे पौष्टिक नाश्ता लें , पर इसका समय भोजन से 3-4 घण्टा पहले और सोकर उठने के 2-3 घण्टे बाद रखें ।
11) एक पौष्टिक नाश्ता यह है कि थोड़े चनों में गेहूँ , मूंगफली , मूंग मिलाकर अंकुरित कर लें । इस अंकुरित अन्न में नींबू और थोड़ा नमक निचोड़कर नाश्ते के रूप में सेवन कर सकते हैं । नमक , नींबू न मिलाना चाहें तो इसे गुड़ के साथ या इसमें थोड़ी भिगोई किशमिश व खजूर मिलाकर भी सेवन कर सकते हैं । ऊपर से चाहे तो थोड़ा दूध पिएं । नमक , नींबू मिलाएं तो दूध न पिएं । इसके अलावा आगे वर्णित खजूर और दूध वाला नाश्ता भी कर सकते हैं या अनुकूल पड़े तो केला - दूध लें ।
12) जाड़े के दिनों में उड़द का आटा , बबूल का गोंद , देशी घी , अश्वगंध तथा मेवे मिलाकर बनाया गया लड्डू भी पाचनशक्ति के अनुसार सेवन कर सकते हैं । पौष्टिक नाश्ते और भी कई हैं , उन्हें सोच - समझकर सेवन करके लाभ उठाया जा सकता है ।
13) दोपहर और शाम के भोजन में पर्याप्त पौष्टिक पदार्थों का सेवन खूब चबा - चबाकर करें।
14) उपलब्धता के हिसाब से गाजर , पालक , चौलाई , टिण्डा , परवल व विभिन्न हरी सब्जियाँ , मौसमी फल , घी का तड़का लगी दाल , आँवले का मुरब्बा , दूध , घी , मक्खन , चावल की खीर आदि सेवन करें । रोटियाँ गेहूँ की खाएं । चाहें तो गेहूँ में तिहाई भाग चने मिलाकर पिसवा लें और इस आटे की रोटी खाएं ।
15) भोजन के बाद एक - दो केले और आगरे का पेठा या आँवले का मुरब्बा लें तो अच्छा है । रात के भोजन में एकाध रोटी कम खाएं ।
16) भोजन के बाद आगे वर्णित अश्वगंधारिष्ट वाला नुस्खा भी सेवन कर सकते हैं । दोनों भोजनों के बीच 8 घण्टे का अंतर रखते हुए मध्यकाल में किसी मौसमी फल या जूस का हल्का पाचक पौष्टिक अल्पाहार ले सकते हैं ।
17) भोजन के दो घण्टे बाद पीने की आदत बनाएं । इसके अलावा दिन भर में डेढ़ - दो घण्टे के अंतराल पर 6-8 गिलास तक खूब पानी पीते रहें ।
18) रात में भोजन से दो - तीन घण्टे बाद और सोने से पूर्व गुनगुने दूध में एक चम्मच घी के साथ मिश्री या दो - तीन चम्मच शहद मिलाकर पिएं । चाहें तो दूध - खजूर वाला आगे लिखा प्रयोग भी कर सकते हैं । सिर्फ इतना ध्यान रखें कि रात में यह नुस्खा सेवन करें तो इसमें खजूर की मात्रा सिर्फ आठ - दस ही रखें सबेरे इसे न सेवन करें ।
19). इतना उपाय करते हुए सबेरे अपने अनुकूल व्यायाम , योगासन , प्राणायाम अवश्य करें । इस संबंध में किसी पुस्तक या योग्य व्यक्ति से जानकारी प्राप्त की जा सकती है । याद रखें , पौष्टिक आहार के साथ बिना उचित मात्रा में श्रम, व्यायाम किए स्वस्थ सुडौल बनना नामुमकिन है।
20) उपर्युक्त सुझावों पर अमल करने के बाद दो - तीन माह में आप अपनी सेहत में क्रांतिकारी परिवर्तन देखेंगे । इन उपायों के साथ अपनी प्रकृति को देखते हुए औषधीय प्रयोग के तौर पर निम्न नुस्यों से भी लाभ उठाया जा सकता है .
21) 1 भाग विशुद्ध कासीस भस्म को 16 भाग सुदर्शन चूर्ण के साथ तीन घण्टे तक सूखा मर्दन करके चूर्ण बना लें । इस चूर्ण को 2 ग्राम की मात्रा में प्रातः सायं जल के साथ सेवन करें । फिर भोजनोपरांत 2-2 ग्राम की 3 मात्रा 10-10 मिनट पर सितोपलादि चूर्ण फाँक लें । इसके बाद आधे घण्टे तक पानी न पिएं । इस योग के सेवन से सातवें दिन से ही रक्तवृद्धि होने लगती है । इस कल्प के सेवन से शुक्र की कमज़ोरी , दुबलापन , आलस्य समाप्त होकर रोगी स्वस्थ , सबल और उत्साहपूर्ण हो जाता है । इस योग का प्रयोग जीर्ण - ज्वर , विषम - ज्वर के उपरांत होने वाली दुर्बलता में विशेष लाभप्रद है ।
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